प्रतापगढ़ का युद्ध
साल 1656 का समय, जब भारत का इतिहास एक नए मोड़ पर खड़ा था। शिवाजी महाराज, जिन्होंने मराठा साम्राज्य की नींव रखी थी, दक्षिण भारत में मुगलों के खिलाफ एक नई ताकत के रूप में उभरे थे। प्रतापगढ़, जो पश्चिमी घाट के बीचों-बीच स्थित था, उस समय उनकी सैन्य रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका था।
प्रतापगढ़ की विशाल और दुर्गम पहाड़ियों के बीच, शिवाजी महाराज ने अपने वीर सैनिकों के साथ एक योजनाबद्ध युद्ध की तैयारी की। उनकी एकमात्र आशा थी कि वे मुगलों को मात देकर अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता को सुनिश्चित कर सकें। प्रतापगढ़ का किला, जो सशक्त दीवारों और गहरी खाईयों से घिरा हुआ था, वास्तविकता में एक सुरक्षा कवच की तरह था।
मुगल साम्राज्य, जो उस समय अपने विस्तार के चरम पर था, ने शिवाजी के बढ़ते प्रभाव को खतरा समझा। और इसी क्रम में, अफज़ल खान, जो एक कुख्यात और क्रूर मुगल जनरल था, को शिवाजी महाराज का सामना करने के लिए भेजा गया। अफज़ल खान ने बड़ी संख्या में सैनिकों के साथ प्रतापगढ़ की ओर बढ़ना शुरू किया। शिवाजी ने जान लिया था कि यह समय एक साहसी निर्णय का है।
युद्ध की तैयारी करते समय, शिवाजी ने अपने सबसे विश्वासपात्र सिपहसालारों को संगठित किया। उन्होंने अपने रणनीतिक दिमाग का पूरी तरह से उपयोग किया, और अपने सैनिकों को यह विश्वास दिलाया कि उनके साहस और समर्पण से कोई भी दुश्मन उन पर विजय प्राप्त नहीं कर सकता। प्रतापगढ़ की ऊँचाई से नीचे देखने पर, उन्हें दुश्मन की सेना का विशाल समूह दिखाई दे रहा था, और यह देख कर उनकी आंखों में आत्मविश्वास की चमक आ गई।

युद्ध की सुबह, जब सूरज की किरणें किले की दीवारों पर पड़ने लगीं, शिवाजी ने अपने सैनिकों को युद्ध के लिए प्रेरित किया। “हम एक महानता की ओर बढ़ रहे हैं; यह केवल हमारी लड़ाई नहीं है, बल्कि हमारी मातृभूमि के लिए है। हम अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा कर रहे हैं,” उन्होंने जोर से कहा।
युद्ध की गर्मी में, दोनों सेनाएं आमने-सामने आईं। शिवाजी ने अपनी चतुराई और रणनीति का उपयोग करते हुए मुगलों को लगातार चौंकाया। रात के अंधेरे का लाभ उठाते हुए, उन्होंने आक्रमण करने वाले सैनिकों को हराने के लिए छापामार शैली का इस्तेमाल किया। अफज़ल खान, जिसके पास संख्या अधिक थी, लेकिन अनुभव कम था, वो शिवाजी के सामने धीमा पड़ गया।
अंततः, जब युद्ध की बुनियाद कमजोर पड़ गई, शिवाजी ने एक अंतिम हमले का आदेश दिया। उनकी वीरता और साहस ने मुगलों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। प्रतापगढ़ का युद्ध सिर्फ एक सैन्य विजय नहीं थी, बल्कि यह एक प्रगतिशील स्वतंत्रता की ओर एक कदम था।
इस प्रकार, प्रतापगढ़ का युद्ध न केवल शिवाजी महाराज की योग्यताओं का प्रतीक बना, बल्कि यह उनके अदम्य साहस और नेतृत्व की गाथा बन गया। यह एक ऐसा अध्याय था जिसने ना केवल मराठा साम्राज्य को सशक्त किया, बल्कि पूरे भारत में स्वतंत्रता की लहर को जन्म दिया।
शिवाजी महाराज का नाम आज भी भारत में गर्व और ऐतिहासिक गौरव के साथ लिया जाता है। उनका प्रभाव केवल एक संक्षिप्त समय के लिए नहीं था, बल्कि उसने आनेवाली पीढ़ियों को प्रेरित किया कि वे अपने अधिकारों की रक्षा करें और स्वतंत्रता के लिए सदा संघर्ष करें।