माधव सदाशिवराव गोलवलकर: एक महान विचारक और नेता
माधव सदाशिवराव गोलवलकर, जिन्हें सामान्यतः गुरुजी के नाम से जाना जाता है, भारतीय राष्ट्रीयता के एक प्रमुख विचारक, स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक संगठन के नेता थे। उनका जन्म 19 फरवरी 1906 को एक साधारण ब्राह्मण परिवार में हुआ था, और उनका जीवन भारतीय समाज को एक नई दिशा देने का कार्य किया।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
गोलवलकर का जन्म नैनीताल में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा वहीं प्राप्त की और फिर उच्च शिक्षा के लिए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। यहाँ रहकर उन्होंने भारतीय संस्कृति, इतिहास और राजनीति के प्रति गहरी रुचि विकसित की। गोलवलकर ने आगे चलकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के साथ जुड़ाव किया, जो भारतीय समाज को एकजुट करने और उसे सशक्त बनाने के लिए स्थापित किया गया था।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेता
गोलवलकर ने 1940 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दूसरे सरसंघचालक के रूप में कार्यभार संभाला। उनके नेतृत्व में, संघ ने भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीयता के मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए कई गतिविधियाँ शुरू कीं। उनका मानना था कि हिंदू संस्कृति और जीवनशैली को संरक्षित करना और इसे आगे बढ़ाना अत्यंत आवश्यक है।

विचारधारा
गोलवलकर की विचारधारा ‘हिंदुत्व’ के सिद्धांत पर आधारित थी, जिसमें वे भारतीय समाज की एकता, अखंडता और सांस्कृतिक पहचान को मजबूत बनाने पर जोर देते थे। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि भारत एक हिंदू देश है और सभी अन्य धार्मिक समूहों को हिंदू संस्कृति के साथ सह-अस्तित्व में रहना चाहिए। उनका प्रसिद्ध उद्धरण “हम एक हिंदू राष्ट्र हैं, और इसीलिए हमें एक परिचितता और भाईचारे की भावना के साथ जीना चाहिए” उनकी सोच को स्पष्ट करता है।
लेखन और सिद्धांत
गोलवलकर ने कई पुस्तकें लिखीं, जिनमें “We, Our Nationhood Defined” और “Bunch of Thoughts” प्रमुख हैं। इन पुस्तकों में उन्होंने भारतीय संस्कृति, समाज और राजनीति के विभिन्न पहलुओं पर अपनी गहरी समझ और विचार व्यक्त किए। उनका लेखन विचारों की स्पष्टता और दीर्घकालिक दृष्टिकोण के लिए जाना जाता है।
विरासत
गोलवलकर का योगदान भारतीय राजनीति और समाज पर गहरा प्रभाव डालने वाला रहा है। वे एक ऐसे नेता थे जिन्होंने भारतीय समाज में राष्ट्रीयता और एकता का संदेश फैलाया। उनकी विचारधारा आज भी साम्प्रदायिकता, एकता और भारतीय संस्कृति के संदर्भ में चर्चा का विषय बनी हुई है।
गोलवलकर का जीवन हमें यह सीख देता है कि एक सशक्त और एकीकृत समाज का निर्माण तभी संभव है जब हम अपनी सांस्कृतिक जड़ों को पहचानें और उन्हें सहेजें। उनकी सोच और दृष्टिकोण भारतीय समाज के विकास में एक महत्वपूर्ण योगदान रहा है, और उनका अध्ययन आज भी आवश्यक है।