अमृता देवी बिश्नोई: पर्यावरण की संरक्षक
परिचय: अमृता देवी बिश्नोई एक ऐसी महिला थीं जिन्होंने पर्यावरण की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। उनका जन्म 1956 में राजस्थान के जैसलमेर जिले के एक छोटे से गाँव में हुआ था। उन्होंने अपने जीवन के दौरान बिश्नोई समुदाय के आदर्शों को अपनाया और इसे अपने जीवन का उद्देश्य बनाया।
बिश्नोई जनजाति और उनके सिद्धांत: बिश्नोई समुदाय एक ऐसी जाति है जो प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के लिए जानी जाती है। इस समुदाय के लोग पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं के प्रति अपनी असाधारण प्रेमभावना के लिए प्रसिद्ध हैं। बिश्नोई लोग ‘सत्य’ और ‘पर्यावरण’ को सर्वोच्च मानते हैं और इनकी रक्षा के लिए किसी भी कीमत पर खड़े रहते हैं।
अमृता देवी का बलिदान: 1973 में, जब कुछ लकड़हारे एक विशेष पेड़ (केटेरी) को काटने के लिए आए, तो अमृता देवी ने उन लोगों को रोकने का साहस दिखाया। उन्होंने कहा, “अगर आपको इस पेड़ को काटना है, तो पहले मुझे काटकर दिखाओ!” उनकी इस साहसिकता ने अन्य बिश्नोई लोगों को भी प्रेरित किया। उनके समर्थन में हजारों बिश्नोई लोग आगे आए और अंततः इस संघर्ष में कई लोगों को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी। यह घटना ‘चिपको आंदोलन’ के रूप में जानी गई, जो पर्यावरण के साथी लोगों के लिए एक मिसाल बन गई।
सामाजिक जागरूकता: अमृता देवी की कहानी ने पूरे देश में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाई। उनके बलिदान ने लोगों को यह समझाया कि वृक्षों और पर्यावरण की रक्षा करना केवल एक व्यक्तिगत मामला नहीं है, बल्कि यह समाज के स्वास्थ्य और भविष्य के लिए आवश्यक है।

उत्तराधिकार: अमृता देवी बिश्नोई की विरासत आज भी जीवित है। उनकी कहानी को आज भी विद्यालयों और colleges में पढ़ाया जाता है। उनकी वजह से कई लोग पर्यावरण संरक्षण के प्रति समर्पित हो गए हैं और इन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अस्तित्व में आनेवाले पर्यावरणीय आंदोलनों को प्रेरित किया है।
निष्कर्ष: अमृता देवी बिश्नोई न केवल एक पर्यावरणीय कार्यकर्ता थीं, बल्कि उन्होंने सत्य और साहस का प्रतीक स्थापित किया। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि अगर हम सामूहिक रूप से एकजुट हों और पर्यावरण की रक्षा के लिए खड़े हों, तो हम अपनी धरती और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर भविष्य सुनिश्चित कर सकते हैं। उनकी प्रेरणा से, हम सभी को चाहिए कि हम अपने पर्यावरण की रक्षा करें और हर संभव प्रयास करें ताकि हम अपने प्राकृतिक संसाधनों को सुरक्षित रख सकें।