महापराक्रमी योद्धा श्री येसाजी कंक जी
हिंदवी स्वराज्य… शेर और हाथी जैसे महान योद्धाओ कि समशेर के बुते खडा रहा था.. इन वीरोने अपने खूनसे सिंचकर इस महान साम्राज्य को जन्म दिया था. आज के लेख में हम बात करेंगे हिंदवी स्वराज्य के एक हाथी जैसे इन्सान की जिसके सामने हाथी भी टिक नहीं पाया था… आज का लेख महान योद्धा येसाजी कंक ने नाम…
छत्रपति श्री श्री शिवाजी महाराज जी कि भागनगर यात्रा
साल था, १६७६,
छत्रपति शिवाजी महाराज दक्षिण में बसी आदिलशाही को एक सबक सिखाना चाहते थे, और इसी कारन वे गोवलकोंडा के क़ुतुबशाह से मिलने जा रहे थे. भागानगर पुहचने पर कुतुबशाह ने शिवाजी महाराज का अच्छा स्वागत किया और ख़ास उनके लिए एक जलसे का आयोजन किया
इस जलसे में, मराठा सेना और क़ुतुबशाह की सेना दोनों ने अपने युद्धकरतब दिखाए… गोवलकोंडा की सेना में बड़ेबड़े हाथी थे … इसके विपरीत मराठा सेना फुर्ती और तेजीसे और साथ ही दुर्गम इलाको में युद्ध लड़ती थी, और हाथी जैसे जानवर सेना को काफी धीमा कर देते थे… इस कारन मराठा सेना में कोई हाथी न था…

Shivaji Maharaj and Kutubshah
जब क़ुतुबशाह ने ये देखा तो वो विस्मय से बोला ” महाराज, आप की सेना में हाथी क्यों नहीं हे”
तब मुस्कुराते हुए शिवाजी महाराजने कहा “शाह, यक़ीनन मेरी फ़ौज में हाथी नहीं हे… पर मेरी फ़ौज में हाथी के बराबर तकाद रखनेवाले योद्धा हे”
येसाजी कंक और हाथी (Yesaji Kank And Elephant)
छत्रपती शिवाजी महाराज कि बात तो सही थी. कुतुबशाह को भी ये जाहीर तौर पर पता था, कि स्वराज्य हा हर वीर हजार हाथियो का हौसला रखता हे. पर शिवाजी महाराज के जवाब के आगे
भागानगर का क़ुतुबशाह भी हार माननेवाला नहीं था… वो भी झट से बोल पडा …” तो मेरे हाथी और आपके हाथी जैसे इन्सान में एक मुकाबला हो जाए”
छत्रपति शिवाजी महाराज ने हंसकर अपने सैनिको की तरफ देखा.
अगले ही पल, मैदान में… एक बड़ा हाथी चीत्कार रहा था …. उस हाथी के सामने एक कसी हुयी कदकाठी का योद्धा तलवार के साथ खड़ा था …. नाम था येसाजी(Yesaji) … येसाजी कंक(Yesaji Kank)… महान येसाजी कंक !!
Yesaji Kank
कुतुबशाही हाथी येसाजी की तरफ बढ़ा … भागा … अब येसाजी और हाथी मे बस एक लम्हे का फासला था, हातही येसाजी को रगडणे के लिये आगे बढा पर येसाजी(Yesaji Kank) ने हाथी को चकमा दिया और बिजली कि गती से उसके पैर पर समशेर का एक घाव किया …. हाथी के पैरसे लहू कि चिंगारी निकल पडी. हाथी अब तिलमिला उठा था … वो येसाजी को रोंद देना चाहता था, कैसे एक इन्सान कुतुबशाही के सबसे बलवान गज को चुनौती दे रहा था.
अब की बार हाथी चुकने वाला नहीं था, वो हर हालत मे सामनेवाले इन्सान को जिंदा छोडणे नही वाला था … हाथी ने येसाजी को अपनी सुन्द में पकड़ लिया … पूरा की पूरा मैदान की धड़कने तेज हो चुकी थी …. येसाजी(Yesaji Kank) की मौत अब कुछ पलो की मोहताज थी.. और …
हाथी ने गेंद कि तरह येसाजी को हवा में फेंका … मराठा सैनिको ने आंखे बंद करली … पर बंद आंख खुलणे से पहले कुतुबशाही हाथी कि चित्कार… दर्दभरी चित्कार से आंखे खोले
हवा में फेके येसाजी(Yesaji Kank) ने हवा से भी तेजी से हवा सेही हाथी की सुन्द पर सटीक वार किये थे, और हाथी की सुन्द काट डाली थी….
और दर्द से कराहता हाथी, मराठा हौसलों के आगे पस्त पड़ा था…
हिन्दवी स्वराज्य के हाथी ने … कुतुबशाही हाथी को मार गिराया था …. धन्य-धन्य थे येसाजी कंक (Yesaji Kank)!!
कुतुबशाह ने छत्रपति शिवाजी महाराज के वाक्य को बस एक मुहावरा समझा था. पर उसने देख भी लिया हाथी जैसा जिगर रखने वाले मराठा ने उसके गजश्रेष्ठ को मार गिराया था. कुतुबशाह ने येसाजी (Yesaji Kank) को उपहार देने की कोशिश की तो इस मानी योद्धा ने वो ये कहकर मन कर दिया की स्वराज्य के अधिपति के सिवा वो किसी का उपहार नहीं लेते.